गौरेला पेंड्रा मरवाहीछत्तीसगढ़

मनरेगा घोटालेबाजो को एफआईआर के बदले मिला अभयदान,डीएफओ,सीसीएफ की भूमिका संदिग्ध?

रितेश गुप्ता की रिपोर्ट
गौरेला पेंड्रा मरवाही

5 महीने बाद भी दर्ज नही हुआ एफआईआर ,मुख्यमंत्री से होगी शिकायत

गौरेला – पेण्ड्रा – मरवाही :- मरवाही वन मंडल में हुए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) में भारी भ्रष्टाचार एवं अनियमितता पर विधानसभा सत्र में पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री द्वारा बड़ी कार्यवाही करते हुए 15 अधिकारियों-कर्मचारियों को निलंबित करने की घोषणा गई थी वही विधानसभा अध्यक्ष के द्वारा उक्त मामले की गंभीरता को देखते हुए दोषियों के विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाही हेतु थाने में आपराधिक मामला दर्ज करते हुए गबन की गई राशि को वसूल करने की बात कही गई थी . परंतु आज 5 महीनो के बाद भी आरोपियों पर एफआईआर दर्ज नही हुआ है , बल्कि एफआईआर के बदले सभी की अभय दान देते हुए सीसीएफ ने बहाल कर दिया है।

विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी अनुसार निलंबित किये गए 11 वन कर्मियों को मुख्य वन संरक्षक बिलासपुर द्वारा बहाल कर दिया गया है। तथा बहाली उपरांत वनपालो को क्रमशः अनूप मिश्रा को बेलपत, अम्बरीष दुबे को मरवाही, उदय तिवारी को खोडरी, सिसोदिया को गौरेला परिक्षेत्र सहायक के रूप के पदस्थ किया गया है वही अश्वनी दुबे वनपाल को विशेष कर्तव्य पेण्ड्रा पदस्थ किया गया है साथ ही निलबिंत किये गए सभी वन रक्षकों को खोडरी एवं पेण्ड्रा परिक्षेत्र के विभिन्न बीटो में पदस्थ किया गया है.

गौरतलब है की मनरेगा केंद्र सरकार की महत्वपूर्ण योजना है उसपर करोड़ो रुपयों का फर्मों के जरिये फर्जी आहरण करना एक गंभीर अपराध के साथ मनरेगा अधिनियम एक्ट का भी उलग्घन है जिसमे आरोपियों पर तत्काल एफआईआर दर्ज किया जाना था परंतु इसके बाद भी महज निलंबित कर बहाल कर देना राज्य शासन की कार्यवाही पर बड़ा सवाल खड़ा करता है. आश्चर्य की बात है कि इतने बड़े करोड़ो के घोटाले में कर्मचारियों की बहाली किस आधार पर की गई यह प्रशासन पर स्वतः एक प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है. ऐसे में तो कर्मचारियों के हौसले और बुलंद हो जाएंगे कि करोड़ो का भ्रष्टाचार करो और निलंबन होकर 45 दिन में बहाल हो जाओ यही खेल अब जंगल विभाग में चलने लगेगा. मामले की शिकायत सीएम भूपेश बघेल से कर CCF, DFO व मनरेगा आरोपियों पर कड़ी कार्यवाही की मांग की जायेगी।

विधानसभा में विधानसभा अध्यक्ष द्वारा कड़ी कार्रवाई करने का स्पष्ट निर्देश दिया गया था उसके बावजूद वन विभाग के अधिकारियों द्वारा आज 5 महीनों के बाद एफआईआर दर्ज ना करते हुए आरोपियों की बहाली करना अपने आप में एक बड़ा सवाल उत्पन्न करता है कि वन विभाग के अधिकारी अपने आप को क्या समझते है ??