छत्तीसगढ़रायपुर

वक्त की मुझ पर इनायत किस कदर है देखिये…
रात हंसकर बोलती है, दिन लगता है गले…(शंकर पाण्डेय वरिष्ठ पत्रकार)

वक्त की मुझ पर इनायत किस कदर है देखिये…
रात हंसकर बोलती है, दिन लगता है गले…

भूपेश सरकार के अपने अभी तक के कार्यकाल में महात्मा गांधी और राम नाम की गूंज छग में सुनाई दे रही है। भाजपा के हिंदुत्व के एजेंडा को न केवल छीनने की पुरजोर कोशिश कर रही है बल्कि छग में लगभग सफल होती दिख रही है।
महात्मा गांधी लगभग 101 साल पहले सिहावा नगरी के कंडेल नहर सत्याग्रह के लिए आये थे । गांधीजी का पहला छग सन 1920 में हुआ था ।यह बात और है कि उनके छग आने के पहले ही ब्रिटिश हुकूमत ने मांगे मान ली थी, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस ने पहले ही गांधी विचार पदयात्रा निकालकर उसका सफलतापूर्वक संचालन किया था। इस दौरान राह में कांग्रेसी नेताओं ने महात्मा गांधी के विचार, रामराज्य की कल्पना, उनके बताए मार्गों पर चलने की प्रेरणा तो ली साथ ही केन्द्र शासित भाजपा सरकार की रीति-नीति सहित प्रदेश में 15 साल तक राज करने वाली रमन सरकार को भी कोसने में कोई कोताही नहीं की थी। गांधी जी सामने थे तो उनके रामराज्य की कल्पना, भगवान श्रीराम, भाजपा के राममंदिर बनाने की घोषणा आदि की भी चर्चा की गई थी, छत्तीसगढ़ वैसे भी मां कौशल्या का मायका रहा है, उनके पुत्र श्रीराम यहां के भांजे थे, श्रीराम के 14 सालों के वनवास में 10 साल लगभग छग में ही वनवासी क्षेत्रों में गुजारे थे। इसे लेकर भी कांग्रेसी नेता बयानबाजी करते रहे। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तो महात्मा गांधी की करूणा को समझने के साथ-साथ सांप्रदायिकता (?) की अंतरंग बनावट और तानाशाही (?) की मंशा के समाजशास्त्र को समझने का आव्हान किया, उनका इशारा किस तरफ है सभी समझ रहे हैं, उन्होंने अपनी महत्वाकांक्षी योजना नरवा, गरुवा, घुरवा और बाड़ी को केवल नारा नहीं गांधी के दर्शन और स्वावलंबन का सूत्र ठहराया है। हाल ही में राम वन पथ गमन योजना के तहत चंदखुरी में मां कौशल्या मंदिर का जीर्णोद्धार , श्री राम की एक बड़ी प्रतिमा स्थापित कर छग के सीएम ने भाजपा का राम पर एकाधिकार के दावे को खारिज भी किया है।


भूपेश बघेल की माने तो उनके (कांग्रेस) के राम… छत्तीसगढ़ की माता कौशल्या के राम, शबरी (शिवरी नारायण) के राम, वनवासी राम(14 साल के वनवास में अधिकांश समय श्रीराम सीता और लक्ष्मण ने छग के जंगल में आदिवासियों के बीच गुजारा उनकी सेना में छग के वनवासियों के पूर्वज भी शामिल रहे होंगे) , छत्तीसगढ़ के भांजे राम(मां कौशल्या का मायका छग में था उस नाते) है न कि अन्य लोगों के लिए चंदे और धंधे के राम है…। उनका इशारा निश्चित ही भाजपा की तरफ था। जो अयोध्या में श्रीराम मंदिर बनाने की बात कर 2 सांसदों से पिछली 2 लोकसभा में बहुमत हासिल कर केन्द्र में सत्तासीन है। बहरहाल कांग्रेस आरोप लगाएगी तो भाजपा चुप भी नहीं बैठेगी, भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तथा पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का कहना है कि अब प्रदेश में कांग्रेस राम का भी बंटवारा करने में लगी है जैसी की कांग्रेस की नीति रही है।

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया…..

छग के सीएम भूपेश बधेल मूलत: छत्तीसगढ़िया हैं तो छग के प्रशानिक मुखिया (सीएस) अभिताभ जैन की भी प्रारंभिक पढ़ाई लिखाई दल्लीराजहरा में हुई है, वन विभाग के मुखिया राकेश चतुर्वेदी भी मूलत: छत्तीसगढ़िया हैं । छग के पुलिस प्रमुख डीएम अवस्थी मूलत: उप्र के हैं पर आईपीएस ट्रेनिग से लेकर डीजीपी का सफर छग में ही पूरा किया है वहीं डीजीपी पद के संजय पिल्ले, अशोक जुनेजा ने भी छग से ही आईपीएस की ट्रेनिग लेकर यहां तक का रास्ता तय किया है। छग में अभी तक पुलिस मुखिया कोई छत्तीसगढ़िया नही बन सका है, राज्य बनने के बाद सीनियर आईपीएस वासुदेव दुबे डीजीपी की दौड़ में शामिल थे पर वे सफल नही हो सके, वहींं राजीव श्रीवास्तव डीएसपी से स्पेशल डीजी जरूर बने …..। छग में जनसंपर्क का संचालक पद बड़ी जिम्मेदारी का होता है इस पद पर अभी छत्तीसगढ़िया सर्वश्री विवेकढांड, गणेश शंकर मिश्र, बीएल तिवारी आदि पदस्थ रह चुके हैं तो भूपेश सरकार बनने के बाद लगभग ढाई साल तारन प्रकाश सिन्हा ( मूलत: बिलासपुर जिला निवासी)बखूबी इस पद का दायित्व निभाया है वे आजकल राजनादगांव के कलेक्टर हैं । वहीं हाल ही में सौमिल चौबे संचालक बनाए गए हैं वे भी बिलासपुर निवासी हैं। इधर प्रभारी आईजी (सरगुजा)अजय यादव, एसपी (जांजगीर) प्रशांत ठाकुर, एसपी (धमतरी )प्रफुल्ल ठाकुर तो ठेठ बस्तरिया हैं, अजय यादव रायपुर, बिलासपुर , दुर्ग सहित अन्य जिलों में एसपी का दयित्व सम्हाल चुके हैं। तो प्रशांत ठाकुर जशपुर, बेमेतरा, बलौदाबाजार , दुर्ग में एसपी रह चुके हैं। वहीं अभी जांजगीर के एसपी हैं । तो प्रफुल्ल महासमुंद में एसपी , रायपुर में शहर कप्तानी भी कर चुके हैं वे वर्तमान मे धमतरी के एसपी हैं।इन तीनों अफसरों की प्रारंभिक पढ़ाई बस्तर के आदिवासी अंचल के गावों में हुई है। वहीं छग के आधुनिक शहर कोरबा के एसपी भोजराम पटेल( रायगढ़ जिले के मूल निवासी)पेंड्रारोड, गौरेला के एसपी बंसल (महासमुंद जिले के मूल निवासी), एसपी जशपुर विजय अग्रवाल भी छग के गांवों से निकले हैं। विजय अग्रवाल तो राजधानी रायपुर, न्यायधानी बिलासपुर में सफल शहर कप्तानी भी कर चुके हैं। भोजराम पटेल की उपलब्धि भी चर्चा योग्य है। इनकी
माता को मात्र अक्षर ज्ञान, पिता प्राथमिक पास, केवल 2 बीघा जमीन, माता -पिता के साथ कृषि में हाथ बटाने, मां के खेतों पर जाने पर घर में खाना बनाने वाले मूल छत्तीसगढिय़ा भोजराम पटेल आईपीएस बनकर छत्तीसगढ़ के राजभवन में एडीसी के पद से सेवा शुरू करके कांकेर, गरियाबंद होकर आजकल कोरबा एसपी के रूप में कार्यरत हैं। उनकी मिलनसारिता, जिम्मेदारी को लेकर प्रतिबद्धता, नम्रता आजकल के आईपीएस अफसरों के लिए प्रेरणास्पद हो सकती है तो युवाओं के लिए वे आदर्श भी हो सकते हैं।


रायगढ़ के खरसिया ब्लाक स्थित ग्राम तारापुर में शासकीय स्कूल में पढ़ाई की फिर प्राईवेट छात्र के बतौर स्नातक की पढ़ाई की, घर की माली हालात देखकर शिक्षा कर्मी वर्ग-2 के पद पर चयन होने पर मीडिल स्कूल में अध्यापन किया स्कूल से लौटकर सिविल सेवा की तैयारी की और यूपीएससी में सफल होकर आईपीएस अफसर बने, यह उनका सौभाग्य ही है कि उन्हें छत्तीसगढ़ काडर भी मिल गया। 2013 बैच के आईपीएस दुर्ग में सीएसपी के पद पर रह चुके हैं । वैसे अघरिया समाज के वे पहले युवा हैं जो सीधे आईपीएस बने हैं इसके पहले इसी समाज के स्व.आर. सी
पटेल डीएसपी से एडीजी बन चुके हैं।

और अब बस….

0छग में सचिव स्तर के एक अधिकारी अगला विधानसभा चुनाव लडने की तैयारी में हैं…?
0अगले विस चुनाव में दो पूर्व आईएएस भाजपा की टिकट पर चुनाव लडेंगे यह लगभग तय है।
0कवर्धा में तनाव के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है?
0अभी तक राजभवन के एडीसी बाद में किसी जिले के एसपी बनते थे पहली बार कोई एसपी, राजभवन में एडीसी बना है।