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हम सभी जाने सबसे प्रसिद्ध आठवें ज्योतिर्लिंग काशी विश्वनाथ के बारे में…
(सुनीता मानिकपुरी पार्षद)

हम सभी जाने सबसे प्रसिद्ध आठवें ज्योतिर्लिंग काशी विश्वनाथ के बारे में…
प्राचीनतम शहर काशी( बनारस) में स्थित है बाबा विश्वेश्वर नाथ का धाम। (सुनीता मानिकपुरी पार्षद)

शहर का इतिहास जितना पुराना है उतनी ही पुरानी है इस ज्योतिर्लिंग की कथाएं। स्कंद पुराण के काशी खंड में श्री काशी विश्वनाथ धाम का जिक्र आता है, जो कि लगभग २५०० वर्ष प्राचीन है।

प्राचीन युग से ही काशी, सनातन का बड़ा केंद्र रहा है जहां भारतवर्ष के प्रत्येक स्थान से श्रद्धालु आते रहे है..

११९४ ई. में मोहम्मद गोरी के सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने कन्नौज के राजा को हराकर काशी में स्थित प्राचीन विश्वनाथ धाम को खंडित कर दिया। जिसे गुजरात के एक व्यापारी ने पुनः इल्तुतमिश के शासनकाल के दौरान बनवाया,
१५ वी शताब्दी के अंत में सिकंदर लोदी के शासनकाल में मंदिर को दोबारा तोड़ दिया गया। राजा टोडरमल ने अकबर के शासन काल में पुनः मंदिर को बनवाया,

फिर अकबर के परपोते औरंगजेब के शासनकाल में सन् १६६९ में श्री काशी विश्वनाथ धाम को पुनः तोड़ा गया तथा यह जानते हुए कि मंदिर को इस स्थान पर दोबारा खड़ा किया जा सकता है, उसने मंदिर की दीवारों पर एक मस्जिद के गुंबद का निर्माण करवा दिया।
मंदिर में ही ज्ञानवापी नाम का एक कुआं स्थित था जिसके जल से प्रतिदिन ज्योतिर्लिंग का जलाभिषेक किया जाता था। मंदिर के प्रमुख महंत ने ज्योतिर्लिंग के साथ कुएं में छलांग लगा दी तथा उसके पश्चात ज्योतिर्लिंग तथा महंत का कुछ पता नहीं चला। औरंगजेब ने इसी कुएं के आधार पर मस्जिद का नाम ज्ञानवापी मस्जिद रख दिया जो कि आज भी काशी में स्थित है।

तत्पश्चात मराठा राजा मल्हार राव होलकर तथा जयपुर के महाराजा आदि ने मंदिर का पुनः निर्माण करवाने का प्रयास किया किंतु कई कारणों से वे सफल ना हो सके।
अंत में मल्हार राव होलकर की पुत्रवधू इंदौर की रानी अहिल्याबाई होलकर जी ने १७८० में काशी विश्वनाथ धाम के समीप ही नए मंदिर का निर्माण करवाया जिसे आज हम और आप देख सकते हैं।

कालांतर में अनेक राजाओं ने मंदिर के निकट अन्य अनेकों मंदिरों के निर्माण करवाए। जिनमें नेपाल के राजा द्वारा ७ फुट की नंदी प्रतिमा उल्लेखनीय है। जिसका मुख आज भी प्राचीन विश्वनाथ मंदिर की ही ओर है।

सन १८३५ में सिख महाराजा रणजीत सिंह जी ने १ टन सोने का दान देकर मंदिर के तीनों शिखरों को सोने के पत्रों से ढका।

इसके अतिरिक्त १९४० में घनश्याम दास बिरला जी द्वारा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के परिसर में बनाया गया शिव मंदिर, न्यू काशी विश्वनाथ मंदिर भी कहा जाता है यह मंदिर अपने विशाल आकार के लिए प्रसिद्ध है।

हिंदू धर्म में काशी विश्वनाथ का उतना ही महत्व है जितना चेहरे पर नाक का । आदि शंकराचार्य से लेकर गुरु नानक देव तथा तुलसीदास से लेकर स्वामी विवेकानंद तक हमारी संस्कृति के अनेक महान देव पुरुषों ने यहां दर्शन किए हुए इसकी महत्ता को स्वीकार किया है।
गंगा स्नान के पश्चात काशी विश्वनाथ का दर्शन प्रत्येक सनातनी का स्वप्न है..भारत की सभ्यता संस्कृति और आस्था केंद्र और गुरुकुल को आक्रांताओं ने बार-बार मिटाने का प्रयास किया पर सनातन आस्था पर विश्वास रखने वाला कट्टर हिंदू सनातनी हर-बार जन्म लेते रहे और काशी को भव्य और दिव्य पुनर्स्थापित कर इन आक्रांताओं के मुंह में करारा तमाचा जड़ा और बता दिया की सनातन ही सत्य है..

सत्य सनातन की जय हो🚩


मेरा मन काशी के नए स्वरूप

दिव्यांशी काशी भव्य_काशी

को देखकर गंगामय और शिवमय हो गया..

श्रद्धा व भक्ति के साथ सम्पूर्ण विश्व काशी विश्वनाथ धाम के लोकार्पण के अवसर पर पतित पावनी गंगा को याद कर भक्तिमय श्रद्धा में शिवमय हो रहा है …..

काशी व काशी विश्वनाथ धाम को मोदी जी के द्वारा आज 13 दिसंबर 2021 को वह सम्मान प्राप्त हो रहा है जिसके वह अधिकारी हैं..

विकास और सनातन परंपरा संस्कृति को संजोने का बेजोड़ सामंजस्य…!!

🙏हर हर गंगे,हर हर महादेव🙏
#Team_HallaBol