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सारंगढ़ के कलाम” की याद मे कलमकारों की आँखे हुवी नम… किसानो के अचल ध्रुव थे भैया “विजय”- नरेश चौहान

“सारंगढ़ के कलाम” की याद मे कलमकारों की आँखे हुवी नम… किसानो के अचल ध्रुव थे भैया “विजय”- नरेश चौहान

रायगढ़। राजनीति मे भला क्या कोई ऐसा व्यक्ति हो सकता है जिसे विपक्षी पार्टी भी प्यार दें! कोई ऐसा कारोबारी हो सकता है जिसे मजदूर से लेकर कर्मचारी अपना मसीहा माने! कोई ऐसा नेक इंसान हो सकता है जो किसानो के हित मे करोड़ो की सम्पत्ति का जमीन दान दे! क्या कोई ऐसा जनप्रतिनिधि हैँ जिन्हे तमाम पत्रकार स्नेह और अपना भाई समझें तो जरूर आपका जबाव होगा शायद.. लेकिन अगर आपको कोई कहें की क्या किसी एक व्यक्ति मे उपरोक्त सभी गुण मौजूद हो सकते हैँ तो निश्चित ही आपका जवाब शायद “असंभव”. लेकिन सारंगढ़ ने एक ऐसा व्यक्ति अपनी आँखों से देखा है जिनका नाम है “भैया विजय बसंत”..

जी हां स्वर्गीय विजय बसंत एकलौते ऐसे व्यक्ति थे जिनमे उपर लिखे सभी गुण मौजूद थे। रायगढ़ जिले के राजनितिक आभामंडल में सारंगढ़ तहसील के औद्योगिक ग्राम गुड़ेली मे स्व. श्री भनेष बसंत घर जन्मे विजय बसंत बचपन से ही दयालु और नेतृत्व गुण लिए थे। जैसे जैसे विजय युवा होते गये उनमे किसानो के प्रति झुकाव बढ़ता गया। जरूरतमंदों की सेवा करके खुशी महसूस करने वाले विजय बसंत की मानो देवलोक मे भी जरूरत थी। इसलिए अल्पायु मे भगवान ने उन्हे अपने धाम मे वापिस बुला लिया। 22 अप्रैल वो दिन था जब गरीब मजदूरों के मसीहा ने अपना स्थूल शरीर छोड़कर सूक्ष्म शरीर के साथ स्वर्ग सिधारे। जिनके पुण्यतिथि मे विधायक उत्तरी गणपत जांगड़े, अरुण मालाकार,विश्वनाथ बैरागी सहित पत्रकार जगत के जाने माने कलमाकर नरेश चौहान, कृष्णा महिलाने,दिनेश जोल्हे, मुकेश जोल्हे,चन्द्रिका भास्कर,पींगध्वज(नीरज),जगन्नाथ बैरागी, हेमेंद्र जायसवाल सहित सैकड़ों जनमानस पहुंचकर स्व. विजय बसंत की मूर्ति मे माल्यार्पण अर्पित किये, एवं मौन धारण कर परमगति हेतु प्रार्थना किये।

किसानो के ध्रुव थे विजय भैया – नरेश चौहान

सत्ता चाहे भाजपा का हो या बहुजन समाज पार्टी या वर्तमान कांग्रेस का हर हाल मे किसानो कर हित मे खड़े रहने वाले सख्श थे भैया विजय बसंत, जिनकी कमी को शायद ही कोई पुरा कर सके।

पत्रकारों के हितैषी थे विजय भैया – कृष्णा महिलाने

आज जब जगह जगह पत्रकारों के खिलाफ़ झूठी शिकायतों का दौर चल रहा है वहाँ भी कलम को सदैव सम्मानित करने वाले विजय बसंत की कमी आज सभी पत्रकारों को खल रही है।