
भ्रष्टाचार का गढ़ बना कमला नेहरू महाविद्यालय, आखिर कैसे बनेंगे यहां के विद्यार्थी जिम्मेदार नागरिक?
छत्तीसगढ़
कोरबा- कोरबा जिले के पुरानी बस्ती स्थित कमला नेहरू महाविद्यालय की स्थापना आज से इक्यावन साल पहले सन 1971 में कमला नेहरू महाविद्यालय शिक्षण समिति द्वारा की गई थी । उस वक़्त श्री डी.एन. पांडेय ने प्राचार्य की जिम्मेदारी सम्भाली थी । उनके बाद क्रमशः श्री आर .एन. पांडेय, श्रीमती कमलजीत कौर और फिर श्री सतीश शर्मा के बाद अब वर्तमान में डॉ प्रशांत बोपापुरकर प्राचार्य का कार्यभार संभाल रहे हैं। सभी प्राचार्य एवं प्रभारी प्राचार्य का कार्यकाल संतोषप्रद रहा लेकिन डॉ प्रशांत बोपापुरकर को प्रभारी प्राचार्य बनाये जाने के बाद महाविद्यालय भ्रष्टाचार और विवादों का गढ़ बन गया है।
बतौर प्रभारी प्राचार्य नियुक्ति के बाद से विवादित रहे डॉ प्रशांत बोपापुरकर
डॉ प्रशांत बोपापुरकर, प्रभारी प्राचार्य (ग्रंथापाल), कमला नेहरू महाविद्यालय कोरबा
कमला नेहरू महाविद्यालय में प्राचार्य की नियुक्ति आज तक नहीं हो सकी है। महाविद्यालय प्रबंधन द्वारा अनुशंसा किए जाने के बाद उच्च शिक्षा विभाग द्वारा महाविद्यालय के ग्रंथापाल डॉ प्रशांत बोपापुरकर को प्रभारी प्राचार्य नियुक्त कर दिया गया ।साथ ही उन्हें केवल आहरण एवं संवितरण का ही अधिकार दिया गया है। लेकिन वो खुद को प्राचार्य समझकर खुलेआम प्राचार्य के सारे अधिकारों का इस्तेमाल कर रहे हैं ।
पूर्व से कार्यरत सहायक प्राध्यापकों के प्रभार को मनमाने तरीके से छिनने और अपने चहेते को देने को लेकर ऐसा विवाद उठा कि वो थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस मुद्दे को लेकर एक के बाद एक समिति की अनेक बैठकें हुई लेकिन नतीजा सिफर रहा ।
प्रभारी प्राचार्य की नियुक्ति अवैधानिक
महाविद्यालय के ज्यादातर प्राध्यापक गण इनकी नियुक्ति के खिलाफ हैं । नाम न बताने की शर्त पर कुछ प्राध्यापकों ने बताया कि यूजीसी की नियमावली के अनुसार किसी भी महाविद्यालय में प्राचार्य अथवा प्रभारी प्राचार्य के लिए न्यूनतम 15 वर्ष का शैक्षणिक अनुभव अनिवार्य है जबकि डॉ प्रशांत बोपापुरकर ग्रंथापाल हैं उन्हें अध्यापन कार्य का कोई अनुभव ही नहीं है ।
महाविद्यालय में 15 वर्ष से अधिक शैक्षणिक अनुभव रखने और यूजीसी के नॉर्म्स पूर्ण करने वाले अनेक प्राध्यापक गण मौजूद हैं लेकिन महाविद्यालय प्रबंधन द्वारा उन्हें दरकिनार कर दिया गया । प्रबंधन द्वारा नॉन एकेडमी को प्रभारी प्राचार्य बना देना पूरी तरह अवैधानिक है । यहां स्थिति ऐसी बन गई है कि महाविद्यालय के सभी प्राध्यापकों व सहायक प्राध्यापकों को एक ग्रंथापाल के अधीनस्थ होकर अध्यापन कार्य कराना पड़ रहा है। ये उनके लिए बेहद अपमानजनक बात तो है ही । साथ ही उनके आत्मसम्मान को भी ठेस पहुँचती है ।
शासकीय इंजीनियर विश्वेश्वरैया स्नातकोत्तर महाविद्यालय कोरबा के प्राचार्य डॉ आर.के. सक्सेना ने बताया कि यूजीसी के नियमानुसार न्यूनतम 15 वर्ष का शैक्षणिक अनुभव वाला ही किसी महाविद्यालय का प्राचार्य बन सकता है
इस संबंध में कमला नेहरू महाविद्यालय शिक्षण समिति के अध्यक्ष श्री आर.एन. पांडेय ने बताया कि शासन से वेतन पाने वाला ही प्राचार्य के लिए योग्य अभ्यर्थी होता है । इसी के चलते प्रबंधन ने डॉ प्रशांत बोपापुरकर की अनुशंसा की थी और प्रबंधन का निर्णय ही सर्वमान्य होता है ।
श्री आर.एन.पांडेय, अध्यक्ष, कमला नेहरू महाविद्यालय शिक्षण समिति
नियुक्ति के संबंध में भारी अनियमितता
महाविद्यालय में पदस्थ कुछ प्राध्यापकों एवं सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति के संबंध में भारी अनियमितता बरते जाने की शिकायत मिली थी । लिहाजा सच्चाई जानने के लिए सूचना के अधिकार के तहत महाविद्यालय में पदस्थ सभी प्राध्यापकों और सहायक प्राध्यापकों की शैक्षणिक योग्यता, नियुक्ति के प्रकार एवं नियुक्ति के संबंध में जानकारी मांगी गई । लेकिन प्रभारी प्राचार्य डॉ प्रशांत बोपापुरकर ने इसे निजी और गोपनीय बताते हुए जानकारी देने से इंकार कर दिया । लिहाजा उच्च शिक्षा विभाग रायपुर में प्रथम अपीलीय आवेदन लगाकर उक्त जानकारी मांगी गई ।
तब प्रथम अपीलीय अधिकारी के समक्ष प्रभारी प्राचार्य डॉ प्रशांत बोपापुरकर ने समस्त प्राध्यापकों, सहायक प्राध्यापकों एवं अन्य स्टाफ द्वारा लिखा गया अभिमत पत्र दिखाते हुए कहा कि स्टाफ के मना करने के कारण आवेदक को जानकारी नहीं दी गई। अपीलीय अधिकारी द्वारा अभिमत पत्र की जांच करने पर पता चला कि कुछ प्राध्यापकों व सहायक प्राध्यापकों ने हां (yes) तो अधिकांश ने नो (No) लिखा था ।
प्रभारी प्राचार्य ने दबाव बनाकर नो (No) लिखने पर किया मजबूर
सूत्रों से पता चला कि प्रभारी प्राचार्य डॉ प्रशांत बोपापुरकर ने ही शातिराना अंदाज में दबाव डालकर सबको अभिमत पत्र पर नो (No) लिखने की सलाह दी थी लेकिन जिन्हें अपनी नियुक्ति के संबंध में जानकारी देने में कोई आपत्ति नहीं थी उन्होंने हां (yes) लिखा ।वहीं अधिकांश ने नो(No) लिखकर दिया। आपको बता दें कि नो लिख कर देने वाले सहायक प्राध्यापकों में वे लोग भी शामिल है जिनकी नियुक्ति संदेह के दायरे में है । या तो उन्होंने अपनी पहचान के बल पर नौकरी हासिल कर ली है या फिर फर्जी अंकसूची व प्रमाण पत्रों के सहारे ।
प्रथम अपीलीय अधिकारी के आदेश पर जो अभिमत पत्र महाविद्यालय द्वारा उपलब्ध कराया गया है वह इस प्रकार है :-
महाविद्यालय प्रबंधन द्वारा आवश्यकता पड़ने पर कब नियुक्ति निकाली जाती है ,कितने आवेदन प्राप्त होते हैं, उनकी शैक्षणिक योग्यता क्या होती है, कब इंटरव्यू लिया जाता है, इंटरव्यू में कितने अभ्यर्थी शामिल होते हैं इन सब की जानकारी महाविद्यालय प्रबंधन द्वारा कभी नहीं दी जाती । इसके पीछे सबसे बड़ी वजह यही है कि अपने चहेतों को पिछले दरवाजे से एंट्री दे दी जाती है ।
क्या यह जिले के उच्च शिक्षित बेरोजगार युवक युवतियों के साथ अन्याय नहीं है ? सार्वजनिक स्थल पर काम करने वाले कर्मचारियों की शैक्षणिक योग्यता और उनकी नियुक्ति भला उनकी निजी और गोपनीय जानकारी कैसे हो जाएगी ?
विद्यार्थियों का चरित्र प्रमाण पत्र अनिवार्य तो प्राध्यापकों का चरित्र सत्यापन क्यों नहीं…
महाविद्यालय में प्रवेश के लिए विद्यार्थियों को स्थानांतरण प्रमाण पत्र के अलावा चरित्र प्रमाण पत्र भी जमा करना अनिवार्य होता है । ऐसे में विद्यार्थियों को भी क्या ये जानना जरूरी नहीं कि महाविद्यालय में अध्यापन कार्य कराने वाले स्वयं प्राध्यापकों का चरित्र कितना आदर्श है । क्या उनके चरित्र का सत्यापन नहीं होना चाहिए ।
हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि कमला नेहरू महाविद्यालय में पदस्थ कुछ सहायक प्राध्यापकों का चरित्र काफी दागदार है । लेकिन प्रबंधन द्वारा इसकी पूरी जानकारी होने के बावजूद उसे ऐसे सहायक प्राध्यापकों का व्यक्तिगत मामला बताकर ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है जबकि ये बेहद संवेदनशील मामला है ।
बीएड के चार सहायक प्राध्यापकों पर छेड़छाड़ का आरोप
आपको बता दें कि साल 2017 माह जनवरी में B.Ed की एक सहायक प्राध्यापिका द्वारा अपने ही विभाग के 4 सहायक प्राध्यापकों पर छेड़छाड़ और अश्लील टीका टिप्पणी करने का आरोप लगाया गया था । इस मामले में जांच कमेटी भी बनाई गई थी लेकिन कार्रवाई आज तक नहीं हुई । ये आज भी रहस्य बना हुआ है कि चारों सहायक प्राध्यापक दोषी हैं या फिर उन्हें बदनाम करने के लिए फंसाया गया है ।
इस मामले की लिखित शिकायत तत्कालीन पुलिस अधीक्षक से भी की गई थी । खुद को बेगुनाह बताने वाले चारों पीड़ित सहायक प्राध्यापक आज भी न्याय के लिए प्रबंधन का मुँह ताक रहे हैं । उन्हें बेवजह भारी मानसिक यंत्रणा के दौर से गुजरना पड़ा । पुलिस के समक्ष बयान देने के लिए वे आज भी तैयार खड़े हैं।
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक बदले की भावना से आरोप लगाने वाली सहायक प्राध्यापिका पर महाविद्यालय प्रबंधन की विशेष कृपा है जिसके चलते इस मामले को दबा दिया गया ।
अपने ही छात्र के खिलाफ छेड़छाड़ का आरोप लगाकर दर्ज कराई फर्जी FIR
पूरे देश में ये अपने आप में पहला मामला है जहां रंजिश के चलते एक सहायक प्राध्यापिका ने ना केवल अपने सहकर्मियों को फंसाया बल्कि अपने ही एक पूर्व छात्र को भी छेड़छाड़ के आरोप में फँसा दिया है । पीड़ित छात्र ने तथाकथित सहायक प्राध्यापिका के खिलाफ प्रताड़ना की शिकायत तत्कालीन प्राचार्या, विभागाध्यक्ष और कोतवाली पुलिस से करते हुए सुरक्षा की गुहार भी लगाई थी । बावजूद इसके उक्त महिला प्रोफेसर पर कोई कार्रवाई नहीं की गई । इससे उसका हौसला बढ़ता गया और 23 नवम्बर 2019 को पीड़ित छात्र पर छेड़छाड़ के आरोप लगाते हुए उसने उसके विरुद्ध फर्जी FIR दर्ज करा दिया।
पीड़ित छात्र ने अब न्याय की गुहार लगाते हुए उक्त महिला प्रोफेसर के खिलाफ 30 मार्च 2022 को उच्च शिक्षा विभाग, कमला नेहरू महाविद्यालय प्रबंधन समेत छग शासन और केंद्रीय गृह मंत्रालय तक शिकायत कर दी है । इस मामले में पुलिस मुख्यालय की ओर से कार्रवाई का निर्देश भी जारी कर दिया गया है लेकिन महाविद्यालय प्रबन्धन कथित सहायक प्राध्यापिका के खिलाफ कोई कार्रवाई करने की बजाय लीपापोती में जुट गया है।
जिस छात्र ने अपना भविष्य संवारने इस महाविद्यालय के बीएड संकाय में प्रवेश लिया था , इस सहायक प्राध्यापिका ने उसकी ही जिंदगी बर्बाद कर दी । इस मामले में प्राचार्य डॉ प्रशांत बोपापुरकर और शिक्षा समिति के अध्यक्ष श्री आर.एन. पांडेय का कहना है कि ये सहायक प्राध्यापिका का व्यक्तिगत मामला है । इसमें हम कोई कार्रवाई नहीं कर सकते ।
आपको बता दें कि इन सबके अलावा इस तथाकथित सहायक प्राध्यापिका पर और भी गंभीर आरोप लगे हैं, जिसे जानकर आपके पैरों तले जमीन खिसक जाएगी। उसकी प्रताड़ना से त्रस्त होकर उसके पति ने भी 19 सितंबर 2020 को खुदकुशी कर ली थी । लेकिन प्रबंधन द्वारा उक्त सहायक प्राध्यापिका के खिलाफ अब तक जितनी भी शिकायतें आयी है उस पर कोई जांच या कार्रवाई करना तो दूर बल्कि खुला संरक्षण दिया जाता है । आपको जानकर हैरानी होगी कि विवादित सहायक प्राध्यापिका पर अपनी कृपा बरसाते हुए प्रभारी प्राचार्य डॉ प्रशांत बोपापुरकर ने उसे ना केवल स्वीप का प्रभारी बनाया बल्कि जिला प्रशासन की तरफ से उसे पुरष्कृत भी कराया।
ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि प्रभारी प्राचार्य डॉ प्रशांत बोपापुरकर का क्या कोई कमजोर नब्ज़ उक्त सहायक प्राध्यापिका के हाथों में है या फिर उसकी दबंगई के चलते पूरा महाविद्यालय प्रबंधन उसके खिलाफ कोई जाँच या कार्रवाई करने से खौफ खाता है ।
आम लोगों से ज्वलंत सवाल…
◆ कमला नेहरू महाविद्यालय की व्यवस्था कितनी चरमराई हुई है यह आपके सामने है । अब सवाल उठता है कि महाविद्यालय में प्रभारी प्राचार्य की नियुक्ति को लेकर क्या महाविद्यालय के वरिष्ठ और यूजीसी के नॉर्म्स पूर्ण करने वाले प्राध्यापकों को अवसर नहीं मिलना चाहिए ?
◆ सार्वजनिक स्थल पर काम करने वाले कर्मचारियों की शैक्षणिक योग्यता और उनकी नियुक्ति के बारे में जानना क्या एक आम आदमी का अधिकार नहीं है ?
◆ क्या पालक का यह अधिकार नहीं है कि जो शिक्षक उनके बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं उनके स्वयं का चरित्र कैसा है ?
◆ क्या प्रभारी प्राचार्य( ग्रंथापाल) डॉ प्रशांत बोपापुरकर को नैतिकता के आधार पर तत्काल अपने पद से त्यागपत्र नहीं दे देना चाहिए ताकि महाविद्यालय के योग्य और उपयुक्त प्राध्यापकों को अवसर मिल सके । लेकिन उनकी हरकतों से तो यही प्रतीत होता है कि वे कुर्सी का मोह त्याग नहीं पाएंगे ।
◆ जिस महाविद्यालय में ऐसी प्राध्यापिका हो जो छात्रों का भविष्य बनाने नहीं बल्कि उन्हें बर्बाद करने बैठी हो ,क्या वहां आप अपने बच्चों को प्रवेश दिलाना चाहेंगे ?
इस महाविद्यालय में पूरी ईमानदारी और निष्ठा से कार्य करने वाले प्राध्यापकों को प्रभारी प्राचार्य द्वारा तरह तरह से मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है , इतना कि परेशान होकर वे स्वयं महाविद्यालय छोड़ दें । वहीं चापलूस किस्म के प्राध्यापक इतने स्वतंत्र हैं कि वो महाविद्यालय को अपना कार्यक्षेत्र नहीं बल्कि घर समझते हैं । अब आप खुद विचार करें कि शिक्षा के जिस मंदिर में भ्रष्टाचार और मनमानी चरम पर हो वहां पढ़ने वाले विद्यार्थियों का भविष्य कैसे बनेगा ।