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ग्राम पंचायत परसदा गौठान का हाल बेहाल! जिम्मेेदार अधिकारियों की नही गल रही दाल! आखिर किसके संरक्षण पर मिल रहा अभयदान?

ग्राम पंचायत परसदा गौठान का हाल बेहाल! जिम्मेेदार अधिकारियों की नही गल रही दाल! आखिर किसके संरक्षण पर मिल रहा अभयदान?

सारंगढ़: सड़कों और शहरों में आवारा घूमते पशुओं पर भी रोक लगाकर, रासायनिक खादों की खपत को कम कर,परम्परागत जैविक खेती को बढ़ावा देने के साथ महिला स्वयं समूहों को रोजगार प्रदान करने के उद्देश्य से छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने महत्वकांक्षी गोधन न्याय योजना के तहत गोठानों का निर्माण कराया था। पशुपालन को बढ़ावा देने के साथ-साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भी बड़े बदलाव की उम्मीद के साथ छत्तीसगढ़ सरकार ने पंचायतों को इसकी महती जिम्मेदारी सौंपी थी, लेकिन सरपंच सचिव एवं गौठान समूह की निष्क्रियता ने मुख्यमंत्री के सपने को सपना बनाकर ही रख दिया है। एक तरफ पूरे देश मे छत्तीसगढ़ मॉडल की चर्चा हो रही है वहीं दूसरी ओर जमीनी हकीकत मे इस योजना का दम घुटने के कगार पर पहुंच गया है। अगर बात सारंगढ़ बिलाईगढ़ की करें तो नवीन जिले मे स्थिति बेहद ही दयनीय नजर आ रही है।

सरपंच संघ अध्यक्ष के गौठान की दशा दयनीय –

जिले के गौठानो की अगर बात करें तो अधिकारियों के संरक्षण के साथ स्थानीय नेताओं के बल पर गौठानों की हालत गंभीर ही नही अपितु दयनीय भी है। स्वयं जिला सरपंच संघ अध्यक्ष एवं प्रांतीय सरपंच संघ सचिव के गृह ग्राम परसदा छोटे मे भौतिक सत्यापन करने पर आपको इस योजना के दुरूपयोग की बानगी की दास्तान आपको प्रत्यक्ष देखने को मिल जाएगी। जहाँ गौठान के स्थान मे भारी अनियमित्ता बरती गयी हैँ, लेकिन अधिकारियों को भौतिक स्थिति से मतलब ना रखकर सिर्फ किताबी खानापूर्ति कर प्रशासन के समक्ष स्वयं की पीठ थपथापाने से ही फुरसत नही है!

ग्राम पंचायत परसदा छोटे को अभयदान या राजनितिक दबाव के समक्ष नतमस्तक हैँ अधिकारी –

लोगों की माने तो स्वयं को जिला अध्यक्ष और प्रांतीय सचिव कहकर स्थानीय मीडिया के साथ अधिकारियों पर दबाव डालकर रसुखदारी करने वाले सरपंच को ना तो आशिकारियों का डर है ना लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की परवाह शायद इसका सबसे बड़ा कारण राजनितिक पकड़ या अथाह धन सम्पत्ति का अकड़ ! लेकिन शासकीय योजनाओं के क्रियान्वयन पर लापरवाही बरत इस महत्वकांक्षी योजना पर भ्रस्टाचार की चादर बिछाने वाले इस बाहुबली सरपंच एवं सचिव पर क्या प्रशासनिक अंकुश लग पाएगा? क्या उचित जांच कर कोई ईमानदार अधिकारी कार्यवाही करेगा भी या नही इस सवाल जा जवाब भी अभी अंधेरे मे है।

खुलासे करने वाले पत्रकारों को मिलता है जेल भेजने की धमकी ? –

एक तरफ सामान्य सरपंच अपने कर्तव्य पथ पर समर्पित रहने वाले सरपंचो की संख्या अधिक है वहीं दूजी तरफ
पद, पैसा और पॉवर के दम मे चूर कुछ जनप्रतिनिधियों के कारण पत्रकारों के लिए सच लिखना भी दुभर हो गया है। जो भी कलमकार इनके भ्रस्टाचार को उजागर करने की हिमाकत करता है उन्हे अवैध वसूली, ब्लैकमेलिंग या झूठे केस मे फंसाने की धमकी मिलता है या जेल की हवा भी खानी पड़ती है! अब देखना दिलचस्प होगा की इस खबर का अंजाम क्या होता है। क्या छत्तीसगढ़ सरकार की महत्वकांक्षी योजना के गला घोटने वालों पर कार्यवाही होती है या सच लिखने वाले पत्रकार के उपर झूठी शिकायत।