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हमें भी सबक लेकर भविष्य में सिर्फ प्रोटोकॉल अधिकारी को ही एयरपोर्ट रिसीव करने भेजना चाहिए..

(राकेश प्रताप सिंह परिहार की कलम से)

भारत सबसे बड़ा ही नही अपितु भाषीय और धार्मिक विविधिता से भरे सबसे पुराने लोकतांत्रिक देश होने के नाते भारत को विरोध दर्ज कराया जाना चाहिए है क्युकी यह भारत का अपमान है ।
यह अमेरिका (यूएसए) की सामान्य यात्रा नही है बल्कि यह एक राजकीय यात्रा है । यह कोई साधारण बात नही है की भारत विश्व के सबसे बड़ा लोकतंत्र है ।
भारत का लोकतंत्र खाली उसकी जनसंख्या के आधार पर महान नही बल्कि महान इस लिए भी है जितनी भाषीय एवं धार्मिक विविधिता हमारे भारत देश में है उतनी भाषीय एवं धार्मिक विविधिता विश्व के किसी भी देश में नही है ।
ऐसे में सबसे बड़े लोकतंत्र देश के प्रधानमंत्री को एयरपोर्ट पर रिसीव करने अमेरिकी सरकार का कोई बड़ा प्रतिनिधि नहीं पहुंचा… जबकि जब कोई देश किसी भी देश के राजकीय दौरे पर जाता है तो प्रोटोकॉल के हिसाब से ही उस देश के प्रधानमंत्री का स्वागत उस देश का उसके समकक्ष व्यक्ति को ही करना चाहिए ।
यूएसए द्वारा यह दोयम दर्जे का व्यवहार कर भारत का अपमान किया है ।
भारत को इसका विरोध दर्ज कराना चाहिएl
जबकि पूर्व में ऐसे मौके भी आए हैं कि, अमेरिकी राष्ट्रपति स्वयं या कुछ मौकों पर सपत्नीक, पीएम को रिसीव करने एयरपोर्ट पहुंचते रहे हैं..।

“” भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को उस समय तत्कालनी राष्ट्रपति जान यह कैनेडी खुद अगुवाई करने एयरपोर्ट पहुंचे “”

“” अटल बिहारी वाजपेई को उस समय के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन वाइट हाउस में खुद अगुवाई की”जेड

“”इंदिरा गांधी को उस समय के राष्ट्रपति सपत्नी खुद अगुवाई करने रिगन पहुंचे””

ऐसे अनेकों पूर्व उदाहरण रहे जब एयरपोर्ट या व्हाइट हाउस पहुंचने पर अमेरिकी राष्ट्रपति स्वयं अगवानी और विदा करने पहुंचते रहे हैं… लेकिन इसके पहले भी जब मोदी अमेरिका गए थे तब व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति ने खुद रिसीव करने के बजाय एक महिला अधिकारी को उन्हें लेने भेज दिया था…

यह समझने की बात है की यह पहले की तरह की अमेरिका की कोई सामान्य यात्रा नही बल्कि राजकीय यात्रा है…।
अब हमें भी सबक लेकर भविष्य में सिर्फ प्रोटोकॉल अधिकारी को ही एयरपोर्ट अगुवाई करने भेजना चाहिए…।