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छत्तीसगढ़ के गांडा जाति की रीति रिवाजों आज भी अनुसूचित जनजाति लोगो के साथ मिलता जुलता हैं।

गांडा जाति को आदिवासी में शामिल करने की मांग हुई तेज..1949 के पहले अजजा. मे शामिल होने कि दावा।

सारंगढ/ भारत वर्ष में ओडिशा व छत्तीसगढ़ एवं मध्यप्रदेश में बसे गांडा जाति के लोग अधिकांश निवासरत है और प्रमुख रूप से निशान, टिमकी,मोहरी बाजा एवं चौकीदार, व कपड़ा बुनना इनकी पेशा हैं। 1949 के पूर्व बरार सरकार में गांडा जाति अनुसूचित जनजाति में शामिल थे। और गोड़ राजाओ का सेवाकारी थे। छत्तीसगढ़ के गांडा जाति की रीति रिवाजों आज भी अनुसूचित जनजाति लोगो के साथ मिलता जुलता हैं। 1956 के बाद प्रिंट त्रुटि के कारण गांडा जाति को अनुसूचित जाति में शामिल कर लिया गया जो आज पर्यंत तक चलते आ रहे है। 1956 से छत्तीसगढ़ के सामाजिक कार्यकर्ताओ ने अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की मांग करते आ रहे हैं। जिला सारंगढ बिलाईगढ़ के चौहान (गांडा) समाज के कार्यकारी जिला अध्यक्ष गोपाल बाघे ने छत्तीसगढ़ मंत्रालय के आदिम जाति कल्याण विभाग के सचिव दुग्गा एवं अवर सचिव परस्ते से मिले। और गांडा जाति को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की मांग पत्र सौपे। मांग पत्र में यह बताया गया है कि गांडा जाति पूर्व में अनुसूचित जनजाति में शामिल थे। प्रिंट त्रुटि के कारण अनुसूचित जाति में शामिल किया गया हैं। इस अवसर पर सुभाष चौहान, संकीर्तन नन्द,देवराज दीपक,किशोर नन्द समाजिक कार्यकर्ता उपस्थित थे।