छत्तीसगढ़रायगढ़

मधुबन योजना अंतर्गत आवंटित जमीन और मकान पर दबंगों का कब्जा, न्यायालयीन आदेश के बावजूद भूस्वामी पिछले 28 वर्षों से दर-दर भटकने को मजबूर…!!

(कैलाश आचार्य की रिपोर्ट)

रायगढ़:- सन 1991 में तत्कालीन समय में रजमत बाई पति दादूराम को आदिम जाति कल्याण विभाग (मध्य प्रदेश प्रशासन) द्वारा मधुबन योजना के तहत भूमि ग्रहिता पट्टा प्रदान किया गया था! जो छोटे अतरमुड़ा में स्थित शासकीय भूमि प.ह.नं.12 खसरा नंबर 146/2 रकबा 9×15 मीटर में भूमि आवंटित है! जो कि रजमत बाई का उक्त भूमि आवास के पूर्व दिशा में जिला पंचायत भवन क्षेत्र में बने मुख बधिर विकलांग बच्चों का स्कूल के पिछला दीवाल है, उत्तर दिशा की ओर भूमि ग्रहिता कारीमती का भूमि आवास सटा हुआ है और रजमत बाई के भूमि आवाज के गेट के सामने दक्षिण व पश्चिम दिशा में पक्की रास्ता है जो उक्त भूमि आवास के चौहद्दी दर्शाता है! उपरोक्त भूमि के हितग्राही रजमत बाई अपने पति से परिवार के साथ लगभग 3 वर्षों तक आवंटित भूमि में मकान बनाकर रह रही थी, इस बीच आर्थिक तंगी और परेशानी की वजह से सब परिवार कमाने के लिए दिल्ली चले गए. तथा मकान के देखरेख की जिम्मेदारी रजमत बाई ने अपने पुत्र सुक्कूराम कौशल टंडन दी थी. कुछ माह उपरांत ही सुक्कूराम टंडन (कौशल) की गैरमौजूदगी में सावन नामक व्यक्ति जबरन ताला तोड़कर मकान में रहने लगा, जिसकी जानकारी कौशल टंडन ने अपने माता-पिता तक श्रमिकों द्वारा दिल्ली ईट भट्ठा काम करने जाने वाले लोगों के माध्यम से भेजी! लगभग 7-8 माह वहां ईट भट्ठे में काम के बाद रजमत बाई व पति दादूराम को मकान कब्जा करने की जानकारी मिलने पर वापस रायगढ़ आए. रायगढ़ आने पर मधुबन योजना अंतर्गत आवंटन भूमि और हितग्राही के मकान को आरआर भगत नमक बाबू (शासकीय कर्मचारी) के द्वारा कब्जा कर निवास करते पाया गया! पूछने पर कभी जमीन को किराए पर लिया है तो कभी खरीदा हूँ बोलकर गोलमोल जवाब देते रहे. तथा पतासाजी करने पर जानकारी मिली की जनपद पंचायत रायगढ़ में भृत्य के पद पर काम करने वाला सावन नामक व्यक्ति को सोनी साहब (BDO) ने मकान रहने के लिए दिया था.सावन की मृत्यु उपरांत तथा मृतक की पत्नी के द्वारा आरआर भगत को जमीन बेची गई है! जिसके बाद हितग्राही रजमत बाई अवैध कब्जे हटाने तथा मधुबन योजना अंतर्गत आवंटित भूमि का अधिकार दिलाने हेतु संघर्ष सन 1994 में शुरू जारी हुआ!
रजमत बाई के द्वारा विभिन्न विभागों,आयोग सहित जिला प्रशासन और पुलिस को आवेदन कर न्याय की गुहार लगाई गई. इस बीच रजमत बाई के पति दादू राम का सन 1995 में निधन हो गया! जिससे बात भी बेवा रजमत बाई ने मधुबन योजना अंतर्गत आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा आवंटित भूमि और मकान का अधिकार पाने के लिए राजस्व विभाग, अनुसूचित जनजाति आयोग, जिला प्रशासन और पुलिस को आवेदन कर अपने हक अधिकार के आवंटित भूमि वह मकान को वापस दिलाने की गुहार लगाते हुए दर-दर की ठोकरें खाती रही. इस बीच बेवा रजमत बाई की शिकायत पर अनुविभागीय न्यायालय द्वारा मामले की जांच कर 22 अगस्त 2006 को आदेश जारी किया गया,जिसमे अवैध कब्जा धारी आर. आर.भगत के ऊपर चक्रधर नगर थाने में आईपीएस की धारा 498 के तहत मामला दर्ज किया गया! न्यायलयीन आदेश के बावजूद बेवा रजमत बाई को प्रशासनिक सहयोग नहीं मिला. तो 05/08/2006 को चक्रधर नगर में न्यायालयीन आदेश संलग्न कर बेवा रजमत बाई ने अपने हक अधिकार के भूमि और मकान को दिलाने की गुहार लगाई, मगर उनकी अर्जी तत्कालीन पुलिस कर्मियों की खुदगर्जी के आगे घुटने टेक दी. किंतु फिर भी बेवा रजमत बाई ने हिम्मत नहीं हारा और संघर्ष जारी रखा. बेवा रजमत बाई 10/01/2007 को आदिम जाति कल्याण विभाग मध्य प्रदेश शासन को पत्र लिखकर मधुबन योजना अंतर्गत आवंटित भूमि पट्टा तथा न्यायालयीन आदेश की कॉपी संलग्न कर अपना हक अधिकार दिलाने की गुहार लगाई. इंसाफ की लड़ाई और संघर्ष के दौरान 7 जनवरी 2008 को आदिवासी कार्यालय मंत्रालय सहायक आयुक्त के दिशा निर्देशन पर तहसील न्यायालय,अनुविभागीय कलेक्टर रायगढ़ में विभिन्न मामलों के निराकरण हेतु शिविर आयोजित की गई थी. सहायक आयुक्त के कार्यालिन पेशी में आई बेवा रजमत बाई रायगढ़ कलेक्टर शिविर में में अपनी पेशी के इंतजार में हनुमान मंदिर के पास बैठी थी, तभी देखते ही देखते अचानक पेशी में आई बेवा रजमत बाई को लकवा भी मार गया. लकवा मारने की वजह से पेशी भी अधूरी रह गई. इंसाफ की लड़ाई लड़ते लड़ते बेवा रजमत बाई पूरी तरह से टूट चुकी थी तथा पति दादू राम टंडन की मृत्यु के पश्चात आर्थिक तंगी से भी जूझ रही थी. लकवाग्रस्त बेवा रजमत बाई का लगभग 1 वर्ष उपचार चला इस बिच बेवा रजमत बाई का का पुत्र सुक्कूराम टंडन उर्फ कौशल ने 06/07/2008 को जिला पुलिस अधीक्षक रायगढ़ से मिलकर आपबीती बताते हुए न्याय के लिए आवेदन किया गया! आवेदन पर पुलिस अधिकारी जांच में घर को भी आए थे तथा झूठा आश्वासन देते हुए उनका बयान दर्ज कर अपनी कार्रवाई की इतिश्री कर ली, न्यायालय आदेश और हक अधिकार होने के बावजूद हितग्राही को अपना मकान नहीं मिल पाया!

गौरतलब हो कि स्व.दादूराम और उनकी पत्नी स्व.रजमत बाई ने अपने जीवन में अनेकों संघर्ष किये हैं, मधुबन योजना तो इस परिवार के संघर्ष का अंश मात्र नमूना है, देश आजाद होने के बाद 1964 में राइट और 1975 में आपातकाल के दौरान इस परिवार पर बहुत ही ज्यादा अन्याय और अत्याचार हुआ है, राइट और आपातकाल का दंश आज भी यह परिवार झेल रहा है, आपातकाल के दौरान लोकतंत्र के सिपाही स्व. दादूराम को भी धारा 151 में जेल भेजा गया था, किन्तु स्व. दादूराम को मीसा बंदियों को मिलने वाले लाभ और पेंशन की सुविधा आज तक ना तो उनके जीवित रहते मिली और ना ही मरने के बाद उनकी पत्नी व बच्चों को लाभ मिल सका है! पति के मरने के बाद इंसाफ की लड़ाई लड़ते लड़ते बेवा रजमत बाई पूरी तरह से टूट चुकी थी. इस परिवार के संघर्षों की लंबी दास्तां है, जो क्रमशः आपको आगे बताया जाएगा, फिलहाल हम मधुबन योजना से जुड़े हितग्राही बेवा रजमत बाई की मृत्यु के विषय में बताते हैं, बेवा रजमत बाई 23/12/2008 को मीसा बंदियों को मिलने वाली पेंशन दिलाने की गुहार लेकर जिला कलेक्ट्रेट पहुंची थी, यहां उन्हें बताया गया कि धारा 151 में जेल गए व्यक्ति को तत्कालीन समय में किसी प्रकार की पेंशन सुविधा नहीं है, पति की मृत्यु और लकवा ग्रस्त होने पर वह पहले से ही टूट चुकी थी, इतना सुनते ही लकवा ग्रस्त बेवा रजमत बाई पर मानो जैसे वज्रपात हुआ हो और वह हताश होकर घर लौट गई, संघर्ष करते-करते आखिरकार सिस्टम से हार मानकर 23/12/2008 को बेवा रजमत बाई उसी रात इस दुनिया से अलविदा हो गयीं! ज्ञात हो कि बेवा रजमत बाई की मृत्यु के कुछ ही वर्षों पश्चात केंद मे भाजपा सरकार आते ही लोकतंत्र के सिपाहियों का सम्मान किया गया तथा घोषणा की गई जिसमे 1975 में आपातकाल के दौरान कांग्रेस सरकार के काले कानून का विरोध करने वाले सभी लोकतंत्र के सिपाहियों (मिशा बंदियों) को पेंशन का लाभ दिया जाएगा! तथा 22 महीने के आपातकाल के दौरान 151 जैसी धारा में भी जेल गए व्यक्तियों को उसका लाभ मिलेगा!

इस परिवार के साथ अन्याय, अत्याचार की पराकाष्ठा पार हो चुकी है बावजूद शासन प्रशासन से किसी प्रकार का पेंशन और मुआवजा सहयोग आज तलक नहीं मिला है! इतने अत्याचार और ज्यादतियां होने के बावजूद इस परिवार की गांधीवादीता एक मिसाल है,मधुबनी योजना अंतर्गत आवंटित भूमि के लिए 1994 से संघर्ष किया जा रहा है, हितग्राही को जीते जी अपना मकान नहीं मिल सका,तथा 2008 में हितग्राही की मृत्यु तक हो चुकी है, जमीन का पट्टा रहने व न्यायालयीन आदेश के बावजूद 28 वर्ष बीत जाने के बाद भी हितग्राही के उत्तराधिकारी को अपना हक अधिकार और मकान नहीं मिल सका है! स्व. रजमत बाई को आवंटित मकान को आरआर भगत न्यायालय के आदेश बाद कार्यवाही भय से छोड़ दिया. किंतु हितग्राही को उसका मकान और भूमि सुपुर्द नहीं किया गया. तथा आर आर भगत के बाद उपरोक्त आवंटित भूमि और मकान पर साधमति साहू नामक महिला के द्वारा लगभग वर्ष 2010-11 में कब्जा कर लिया गया!

बहरहाल मधुबन योजना अंतर्गत रजमत बाई पति दादूराम को आवंटित भूमि पर वर्तमान में बेवा साधमति साहू उर्फ मुन्नी अपने दो विवाहित लड़कों के परिवार के साथ रह रहे हैं! तथा आज भी हितग्राही का पुत्र सुक्कूराम टंडन उर्फ कौशल अपने परिवार के साथ हुए जुल्म अत्याचार के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं तथा अपने हक और अधिकारों के संवैधानिक लड़ाई लड़ रहा है! आवंटित भूमि को पाने के लिए संघर्ष की कहानी लगभग 28 वर्ष हो चुकी. अब यह देखना लाजमी होगा कि योजना अंतर्गत लाभान्वित हितग्राही के वारिसान (उत्तराधिकारी) के पास पट्टा और न्यायालय के आदेश होने के बाद भी आखिर उसे अपना अधिकार कब मिलेगा??.. आखिर प्रशासन पीड़ित को कब न्याय दिलाएगी??? दबंगों से हितग्राही का मकान और भूमि आखिर कब कब्जा मुक्त होगा?? या मधुबन योजना के हितग्राही स्व. रजमत बाई की तरह दर-दर की ठोकरें खाते हुए हितग्राही के पुत्र सुक्कूराम टंडन (उत्तराधिकारी) का भी अंत हो जाएगा??…

🎯 1964 में राइट और 1975 में आपातकाल का दंश आज भी झेल रहा यह परिवार….स्व.दादूराम टंडन परिवार पर अन्याय अत्याचार की पराकाष्ठा और संघर्ष की दास्तान…!! क्रमशः….. ✍✍✍

कैलाश आचार्य रायगढ़
मो. 07225850466